हुस्न का जादू जगाए इक ज़माना हो गया.
ऐ सुकूते-शामे-ग़म फिर छेड़ उन आँखों की बात.
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी करना कोई आसाँ न था.
हज़्म करके ज़हर को करना पड़ा आबे-हयात.
जा मिली है मौत से आज आदमी की बेहिसी
जाग ऐ सुबहे-क़यामत,उठ अब ऐ दर्दे-हयात.
कुछ हुआ,कुछ भी नहीं और यूँ तो सब कुछ हो गया.
मानी-ए-बेलफ्ज़ है ऐ दोस्त दिल की वारदात.
तेरी बातें हैं कि नग्में तेरे नग्में है सहर.
ज़ेब देते हैं ‘फ़िराक़’औरों को कब ये कुफ्रियात६.