‘काका’ से कहने लगे, शिवानंद आचार्य
रोना-धोना पाप है, हास्य पुण्य का कार्य
हास्य पुण्य का कार्य, उदासी दूर भगाओ
रोग-शोक हों दूर, हास्यरस पियो-पिलाओ
क्षणभंगुर मानव जीवन, मस्ती से काटो
मनहूसों से बचो, हास्य का हलवा चाटो
आमंत्रित हैं, सब बूढ़े-बच्चे, नर-नारी
‘काका की चौपाल’ प्रतीक्षा करे तुम्हारी

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