हाँ ऐ यक़ीनेवादा! दामन तेरा न छूटे।
यह आसरा न टूटे वो आयें या न आयें॥

दिल में आते हुए शरमाते हैं।

अपने जलवों में छुपे जाते हैं॥

नामहरबानियों का गिला तुझ से क्या करें।

हम भी कुछ अपने हाल पै अब महरबाँ नहीं॥

तसकीन अजीब चाहता हूँ।

दुश्मन का नसीब चाहता हूँ॥

ग़म भी गुज़श्तनी है ख़ुशी भी गुज़श्तनी।

कर ग़म को अख़्तयार कि गुज़रे तो ग़म न हो॥

By shayar

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