हर तमन्ना सर-बज़ानू है अभी
हर ऩजर मसरूफ़े-तजईने-चमन
हर रविश अपनी महुब्बत के रविश
क़ासिदे-अम्नो-अमाँ अपना चलन
जो भी चाहे आके सूरत देख ले
आईना है अपना आईने चमन
हर नज़र यूँ पाक होना चाहिए
जिस तरह से सबुबह की पहली किरन
आप अब क्यों मायले-तख़रीब हैं
हम हेैं जब मसरूफ़-तामीरे-चमन
हम ज़बाँ देकर न बदलेंगे कभी
ज़िन्दगी चाहे वदल दे पैरहन
चल रहे हैं आप जिस अन्दाज़ से
यह नहीं राहे मुहब्बत का चलन
है ज़बाँ पर ज़िक्रे पैमाने वफ़ा
और सारी हरकतें पैमाँ-शिकन
याँ फ़रिश्ता भी इजाज़त लेके आये
यह है मेरा अपना फ़िरदौसे वतन
फिर जहन्न्ाम से न बच सकिएगा आप
आँच भी आई अगर सूए-चमन
अम्ने-आलम की हिफ़ाजत के लिए
बॉँध सकते है अभी सर से क़फ़न
अब अगर ख़तरे में आया बाँकपन
हर शिकन माथे की होगी सफ़-शिकन