हर एक अलम खुशी खुशी सहना है
ले जाये जिधर मौज उधर बहना है
बे-सूद हैं ऐ दिल ये हमारे शिक्वे
जिस हाल में वो रक्खे हमें रहना है।
सुनता हूँ कि हर दर्द का दर्मां तू है
बे यार का बेकस का निगहबां तू है
आ अपने ‘रतन’ पर भी करम कर या रब
बद बख़्त-ओ-ज़बूं हाल का पुरसां तू है।
तक़दीर ने पहले तू बसारत छीनी
लाग़र से बदन में थी जो ताक़त छीनी
इस पर भी न कम बख़्त का अरमां निकला
अब क़हर ये ढाया कि समाअत छीनी।
क्या रंग दिखता है मुक़द्दर मुझ को
घर होते हुए रखता है बे घर मुझ को
गुज़री थी जवानी तो मुसीबत में ‘रतन’
पीरीं में भी ढोने पड़े पत्थर मुझ को।