हरिण-नयन हरि ने छीने हैं।
पावन रँग रग-रग भीने हैं।
जिते न-चहती माया महती,
बनी भावना सहती-सहती,
भीतर धसी साधना बहती,
सिले छेद जो तन सीने हैं।
जाने जन जो मरे जिये थे,
फिरे सुकृत जो लिये दिये थे,
हुए हिये जो मान किये थे,
पटे सुहसन, वसन झीने हैं।
हरिण-नयन हरि ने छीने हैं।
पावन रँग रग-रग भीने हैं।
जिते न-चहती माया महती,
बनी भावना सहती-सहती,
भीतर धसी साधना बहती,
सिले छेद जो तन सीने हैं।
जाने जन जो मरे जिये थे,
फिरे सुकृत जो लिये दिये थे,
हुए हिये जो मान किये थे,
पटे सुहसन, वसन झीने हैं।