रात है, बातें हैं, सरगोशी है
तू है, मैं हूँ
अपने गूँधे हुए ग़म के बंधन
शब के सन्नाटे में
जाग उठते हैं, तड़प जाते हैं, चिल्लाते हैं
दाम-ए अफ़सूँ व तिल्स्मात में फँस जाता है दिल
जिस्म और जान को खा जाता है ग़म
नीशे ग़म और दिले ज़ार में पैकार चली जाती है
गर्म-गर्म आँसू ढलक जाते हैं, रुख़सारों पर
ज़िन्दगी यादों का मीनार बना लेती है
जो उड़ाता है जहाँ में अब्दियत का मज़ाक
देखते-देखते चुपचाप बिखर जाती है तारों भरी रात
चाँद छुप जाता है
रात है, बातें है, सरगोशी है
तू है, मैं हूँ
इन परिन्दों की तरह सरगोशी
जो दबी साँस मे गाते हैं बिछड़ने के लिए
गीत तारों भरी रातों में जिसे हमने बुना ।
धीमी आवाज़ में सरगोशी के अन्दाज़ में गाया हुआ गीत
हाथ थर्राए, जुदाई की घड़ी आ पहुँची
हाथ में ले लिए मैंने तेरे हाथ
ताके इन हाथों को पहचानूँ
उन हाथों से मुहब्बत कर लूँ
जिस्म और जान के रिश्तों के बिख़र जाने तक
जाविदाँ शील-ए जव्वाला की इक चिंगारी
मैंने ले ली है तेरे होंटों से
मैं जहाँ भी रहूँ जिस जा भी रहूँ
अपनी आँखें तो उफ़क़ज़ारों में मिलती ही रहेंगी कहीं दूर
और दिल चुपके से मिल जाएँगे दिल ही दिल में
मेरे सैलाब-ए तखय्युल में तेरी याद ऐ दोस्त
इस तरह तैरेगी
सुबह दम तैरता फिरता है किसी झील में जैसे कोई हंस
इन हवाओं में तेरे गीत
वो बिखरे हुए गीत
गूँज उट्ठेंगे मेरे कानों में
मेरे हमदम
मेरे दोस्त ।

By shayar

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