“दीप, तू जागृत रहा है रात भर
और मैं बेसुध पड़ा सोता रहा।
हाय, अत्याचार यह निज गात पर,
स्नेह – सह तू प्रज्ज्वलित होता रहा।”

“प्रज्वलित होता रहा, अच्छा हुआ,”
दीप बोला – “जागना मेरा सफल।
अब सुजागृति ने तुझे आ कर छुआ,
पा सकूँगा सुप्ति-सुख मैं भी विमल!”

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *