सुन लो कि रंगे-महफ़िल कुछ मौतबर नहीं है।
है इक ज़बान गोया, शमये-सहर नहीं है॥
मुद्दत से ढूंढ़ता हूँ मिलता मगर नहीं है।
वो इक सकूने-ख़ातिर जो बेश्तर नहीं है॥
सुन लो कि रंगे-महफ़िल कुछ मौतबर नहीं है।
है इक ज़बान गोया, शमये-सहर नहीं है॥
मुद्दत से ढूंढ़ता हूँ मिलता मगर नहीं है।
वो इक सकूने-ख़ातिर जो बेश्तर नहीं है॥