सिसिर के हो गेल अन्त, कोइलिया कुंहुकि पुकारे ॥1॥

माघ पंचमी सुदि पहुंचल आ
आज से होत बसन्त ॥2॥ को.

तृन तरु डोले पंछी बोले
पवन किलोले दिगन्त ॥3॥ को.

कुरचइ चिंउँ चिंउँ मुदित मयनमा
जग में सुखी सब जन्त ॥4॥ को.

स्वागत रितु, वन, पवन, पखेरु
स्वागत सबके अनन्त ॥5॥ को.

नर नारी मिल फाग जगावे
होली चाहे बसन्त ॥6॥ को.

कृष्ण अबीर गुलाल उड़ावे
सुख प्रगटे एही पंथ ॥7॥ को.

By shayar

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