सितम की इंतिहा है और मैं हूँ
ग़मे-सब्र-आज़मा है और मैं हूँ

किया पामाल ग़म ने दिल को लेकिन
वही जोशे-वफ़ा है और मैं हूँ

उधर जौर-ओ-जफ़ा है और वो हैं
इधर पासे-वफ़ा है और मैं हूँ

सफ़र कैसा कहां का शौके-मंज़िल
किसी का नक़्शे-पा है और मैं हूँ

सुकूने-जां है इक आवाज़े-दिलकश
कोई शीरीं-नवा है और मैं हूँ

दिले-बेताब ने भी साथ छोड़ा
बस अब मेरा ख़ुदा है और मैं हूँ

ये आलम है ‘रतन’ नाकामियों का
कि आहे-नारसा है और मैं हूँ।

By shayar

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