साग़र से लब लगा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी
सहन-ए-चमन में आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी

आ जाओ और भी ज़रा नज़दीक जान-ए-मन
तुम को क़रीब पाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी

होता कोई महल भी तो क्या पूछते हो फिर
बे-वजह मुस्कुरा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी

साहिल पे भी तो इतनी शगुफ़ता रविश न थी
तूफ़ाँ के बीच आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी

वीरान दिल है और ‘अदम’ ज़िन्दगी का रक़्स
जंगल में घर बनाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी

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