की, गांधी प्रभुताई, जगत महँ आई।। टेक।।
जन्मे वैश्य जाति में आकर अद्भूत कीन्ह कमाई।
कर गए नाम अमर दुनिया में हो, कर संसार भलाई।
जगत महँ आई।। 1
नहिं राजा थे किसी देश के उर सम्राट् कहाई।
रहा अंश ईश्वर का उन में हो, सकल भूप सिर नाई।।
जगत महँ आई।। 2
सहस वर्ष का जकड़ा भारत रहा गुलाम दुखदाई।
कठिन दुख्य निज तन पर सहकर हो, फिर से राज्य दिलाई।
जगत महँ आई।। 3
नहिं दुश्मन थे किसी धर्म के निशदिन करत सहाई।
कहैं रहमान ‘नाथु’ के कर से हो अपनी जान गँवाई।।
जगत महँ आई।। 4