वो एक तुम कि सरापा बहारो-नाज़शे-गुल।
वो एक मैं कि नहीं सूरत आशनाए-बहार॥
ज़मीं पै लाल-ओ-गुहर बन के आशकार हुआ।
छुपा न ख़ाक में जब हुस्ने-ख़ुदनुमाए-बहार॥
तआलुके़-गुलो-शबनम है राज़े-उलफ़त भी।
उन्हें हँसाए, जहाँ तक हमें रुलाये बहार॥
वो एक तुम कि सरापा बहारो-नाज़शे-गुल।
वो एक मैं कि नहीं सूरत आशनाए-बहार॥
ज़मीं पै लाल-ओ-गुहर बन के आशकार हुआ।
छुपा न ख़ाक में जब हुस्ने-ख़ुदनुमाए-बहार॥
तआलुके़-गुलो-शबनम है राज़े-उलफ़त भी।
उन्हें हँसाए, जहाँ तक हमें रुलाये बहार॥