जिन प्रभुता से प्रभु रचे चंद्र सूर्य आकाश।
रची भूमि सागर सहित तिस पर परत प्रकाश।। 1

अद्भूत ईश्‍वर के चरित मानुष किमि समुझाय।
रवि किरनें जल पर परें तुरत भाप बनिजाय।। 2

पवन प्रसंग से भाप उड़ सो अकाश को जाय।
पाववै शीत अकाश में तुरत जलद बन जाय।। 3

जो पावै गरमी अधिक जल बरसे घनघोर।
अरु सरदी हो अधिक नभ ओला बरसैं जोर।। 4

बरसै पानी जिस घड़ी अरु सूरज खुल जाय।
तब तुम देखहु जलद पर क्‍या तुमको दिखलाय।। 5

तिरछी किरनें सूर्य की परें जलद पर जाय।
जल कण पर रंग किरन का इंद्र धनुष कहलाय।। 6

गरज चमक बादल तड़ित सुनें लखै सब कोय।
भिरें जलद दुइ आय कर वही चमक धुनि होय।। 7

निशिदिन निकरै भाप भुइं निशि को ठंडक पाय।
गिरै बनस्‍पति पर तुरत सोई ओस कहाय।। 8

कोहिरा ओस न एक है कोहिरा गिरै अकाश।
ओस परत है भूमि से यह विज्ञान प्रकाश।। 9

यह शिक्षा विज्ञान की अपने गुरु से पाय।
सो मुंशी रहमान खाँ दीन्‍ह पद्य में गाय।। 10

By shayar

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