वा गर्म आँसुओं की रवानी तमाम रात
देखा मआल-ए-सोज़-ए-निहानी तमाम रात
मेरी ही तरह आप कभी मेरी याद में
हों मुब्तला-ए-सोज़-निहानी तमाम रात
मैं आप के हुज़ूर न हूँगा तो दिल मिरा
होगा बराए याद-दहानी तमाम रात
उन की बहार-ए-हुस्न से आलम ही और था
थी चाँदनी भी कितनी सुहानी तमाम रात
रोता नहीं ‘शफ़ीक़’ ही उन के फ़िराक़ में
करती हैं वो भी अश्क-फ़िशानी तमाम रात