वायु न होती धरनि पर नहीं जियत जिव धारि।
बिनु प्रसंग घन वायु के नहिं बरसत जग वारि।।
नहिं बरसत जग वारि वायु दुर्गंध नशावै।
कठिन तेज रवि की किरन छिन महं तपन बुझावै।।
कहैं रहमान वायु सुखदाता जीवन जियें भर आयु।
कोई वस्तु नहिं होत जग जो नहिं होती वायु।।