वही होती है रहबर जो तमन्ना दिल में होती है
ब-क़द्र-हिम्मत-ए-रह-रौ कशिश् मंज़िल में होती है
मोहब्बत दिल में होती है तमन्ना दिल में होती है
जवानी उम्र की कितनी हसीं मंज़िल में होती है
मोहब्बत ऐ मआज़-अल्लाह मोहब्बत दम निकल जाए
अगर महसूस भी उतनी हो जितनी दिल में होती है
ठहरने भी नहीं देती है उस महफ़िल में बेताबी
मगर तस्कीन भी जा कर उसी महफ़िल में होती है
मिरा क्या साथ देंगे ग़ैर बहर-ए-इश्क़ में ‘बिस्मिल’
वो उस कश्ती में हैं जो दामन-ए-साहिल में होती है