वन-वन के झरे पात,
नग्न हुई विजन-गात।
जैसे छाया के क्षण
हंसा किसी को उपवन,
अब कर-पुट विज्ञापन,
क्षमापन, प्रपन्न प्रात।
करुणा के दान-मान
फूटे नव पत्र-गान,
उपवन-उपवन समान
नवल-स्वर्ग-रश्मि-जात।
वन-वन के झरे पात,
नग्न हुई विजन-गात।
जैसे छाया के क्षण
हंसा किसी को उपवन,
अब कर-पुट विज्ञापन,
क्षमापन, प्रपन्न प्रात।
करुणा के दान-मान
फूटे नव पत्र-गान,
उपवन-उपवन समान
नवल-स्वर्ग-रश्मि-जात।