नफरत की आग बढ़ने न पाये बुझा के चल
उठ और प्रेम-प्यार की गंगा बहा के चल
कदमों से अपने चाँद सितारे उगा के चल
चल और आसमाँ को जमीं पर बिछा के चल
जो राह रोकती हो वह दीवार ढा के चल
रस्ता अगर नहीं है तो रस्ता बना के चल
फिर हादसे ने खून दिया लोकतंत्र को
फिर आई जिन्दगी, कदम आगे बढ़ा के चल
होने लगेंगी प्यार के फूलों की बारिशें
राहों से इख्तिलाफ के काँटे हटा के चल
फरमान वक्त का हे यह हर भारती के नाम
मतभेद सारे अपने दिलों से मिटा के चल
होती है शाम, मस्जिदो-मन्दिर हैं सामने
इक एक दीप दोनों में पहले जला के चल
होना है सर बुलन्द अगर फिर जहान में
साख अपने प्यारे देश की ऊँची उठा के चल
आजाद हिन्द फौज कीमानिन्द ऐ ’नजीर’
सबके कदम से अपने कदम को मिला के चल