रामभजन सब सार मिठाई । हरि संताप जनमदुख राई ॥ध्रु.॥

दुधभात घृत सकरपारे । हरते भुक नहि अंततारे ॥१॥

खावते जुग सब चलिजावे । खटमिठा फिर पचतावे ॥२॥

कहे तुका रामरस जो पावे । बहुरि फेरा वो कबहु न खावे ॥३॥

By shayar

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