यमुना के तीर पे सखीरी सुनी मै
चंचल साँवर कुँवर के बाँसुरी।
बिसर गई नीर भरने को
फिर आ गई घर, छोड़ के गागरी।
नाम ले बजाने लगे बाँसुरिया निलाज बाँसुरिया
बन में पापिहा बोल उठा पियापिया
पनघट पे हँसने लगी गोकुल की नागरी।
निसदिन मोहे साँस ननद देत गारी
निर्मल मोरे कुल मे लगे कृष्णकारी
जहाँ जाऊँ देखते पाँऊ खड़े हैं किशोर हरि।

By shayar

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