मैकदा था चाँदनी थी मैं न था
इक मुजस्सम बेख़ुदी थी मैं न था

इश्क़ जब दम तोड़ता था तुम न थे
मौत जब सर धुन रही थी मैं न था

तूर पर छेड़ा था जिसने आप को
वो मेरी दीवांगी थी मैं न था

मैकदे के मोड़ पर रुकती हुई
मुद्दतों की तश्नगी थी मैं न था

मैं और उस ग़ुंचादहन की आरज़ू
आरज़ू की सादगी थी मैं न था

गेसूओं के साये में आराम-कश
सर-बरहना ज़िन्दगी थी मैं न था

रदै-ओ-काबा में ‘अदम’ हैरत-फ़रोश
दो जहाँ की बदज़नी थी मैं न था

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