मैं कैसे होरी खेलूँ राम श्याम करे बरजोरी।
अबीर गुलाल गाल में लावत धरी बहियाँ झकझोरी।
बार-बार अंगियाबंद तोरी सारी रंग में बोरी।
ग्वाल बाल संग गारी गावत अबिर लिए भर झोरी।
अवचक में मारी पिचकारी केसर के रंग घोरी।
लोक लाज एको नाहीं मानत मोसों करत ठिठोरी।
राह बाट में रार मचावे अबहीं उमिर की थोरी।
द्विज महेन्द्र कोई बरजत नाहीं देख रही सब गोरी।
कबहीं कसर सधैहों मोहन तब बृषभान किशोरी।

By shayar

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