थक के रह जाते हैं इस्तेदलाल के जिस जा क़दम
टूट जाता है पहुँच कर जिस जगह मन्तिक़ का दम ।

        ख़्वाबे अक्लो होश की मजहूल ताबीरों से दूर
        फ़लसफ़ी की किस तरह और क्यों की ज़ंजीरों से दूर ।

मेरे रहने का जहान-ए-जावेदानी और है
दिल की दुनिया-ए-निहां की ज़िंदगानी और है ।

        ख़ुद तराशीदा बुते नाज़ आफरी मेरा वजूद
        मेरी ज़ाते पाक मस्जूदे जहाने हस्त ओ बूद।

दूसरा कोई नहीं रहता, जहाँ रहता हूँ मैं,
अपने सैलाबे ख़ुदी में आप ही बहता हूँ मैं ।

        मेरे सजदे के लिए ही वक़्फ़ है मेरी जबीं
        मेरी अक़्लीमे अना में दूसरा कोई नहीं ।

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