मेरी खामोशी पे इक हंगामा-ए-तकरीर है
आपकी महफिल में चुप रहना भी क्या तकसीर है ?
जिससे सुनना चाहो सुन लो आ के रूदादे जुनॅूँ
आज मुँह खोले हुए हर हल्का-ए-जंजीर है
दूसरे का तीर गर होता तो कर जाता खता
जिसने जख्मी कर दिया मुझको वा मेरा तीर है
कब तलक चूमेगा दीवाने ये वहरीरे हसीं
जाके चूम उस हाथ को जिस हाथ की तहरीर है
मेरे साथ चल दिये और मैं ये कहता रह गया
आप चलिए मेरे आने में अभी ताखीर है
ले सको तो ले लो इक तस्वीर उस तस्वीर की
फिर न हाथ आयेगी ये मिटती हई तस्वीर है
सिलसिले जिन के मिले हैं उनके गेसू से ’नजीर’
उन फकीरों की दुआओं में बड़ी तासीर [5] है