हर हसीन मंज़र की आड़ में गुज़र उनका
हँस पड़े उधर जलवे रख़ हुआ जिधर उनका
उनको सबसे है निस्बत वो हैं शायरे फ़ितरत
हर कली में दिल उनका फूल में जिगर उनका
हर हवा के झोंके में कालिदास का कासिद
हर पहाड़ का झरना एक नामाबर उनका
उनका रथ हर इक पथ पर वो ख़याल के रथ पर
हर जगह क़याम उनका हर तरफ़ सफ़र उनका
कालिदास तनहा भी और पूरी महफिल भाी
राह रौ [ भी, रहबर भी, रास्ता भी, मंजिल भी
हर विचारधारा में धड़कनें हैं भारत की
मादरे वतन के वो हैं दिमाग़ भी दिल भी
हो तरंग सरिता की या उमंग दरिया की
सबसे वो अलग भी हैं और सब में शामिल भी
घन गरज के वो राजा, मेघ दूत है उनका
वो तो ख़ुद ही तूफाँ हैं और ख़ुद ही साहिल भी
कालिदास फ़ितरत की वो हसीन अँगड़ाई
जिस पे नाज़ करती है हर चमन की रअनाई
कुछ अयाँ हिमाला से कुछ अयाँ हिमाचल से
कल्पना की ऊँचाई कल्पना की गहराई
हर हसीन मुसकाहट मौज उनके मन की है
हर कली के घूँघट पर उनकीकार फ़रमाई
हुस्न देके फूलों को आँख देके भौरों को
आप ही तमाशा हैं आप ही तमाशाई
कालिदास का दिल क्या दिल नहीं द़फीना है
जिसमें राज़े फ़ितरत है वो कवि का सीना है
कालिदास पर लिखना मेरे बस से बाहर था
कल्पना के माथे पर अब तलक पसीना है
कद्र जो करे दिन की, दिन तो है उसी का दिन
जो लिखे हर इक रूत पर उसका हर महीना है
शायरों की दुनिया है दायरा अँगूठी का
कालिदास अँगूठी का बे बहा नगीना है
छा गये हैं दुनिया पर बन के दर्द का बादल
आँसुओं की भाषा में लिख गए हैं ’शाकुन्तल’
आश्रम की वीरानी ग़म और इतना तूफ़ानी
काँप-काँप उठे पंछी, चीख़़-चीख़ उठा जंगल
इक शकुन्तला का ग़म और सबकी आँखें नम
फूट कर ऋषि रोएँ रोए हरनियों का दल
लोग पढ़़ते जाते हैं होश उड़ते जाते हैं
इश्क़ की कहानी क्या, जो बना न दे पागल
सर झुकाना पड़ता है एक-एक उपमा पर
कालिदास छाए है आज अदब की दुनिया पर