प्यार से आँख भर आती है कँवल खिलते हैं
जब कभी लब पे तेरा नामे-वफ़ा आता है ।
दश्त की रात में बारात यहीं से निकली
राग की रंग की बरसात यहीं से निकली ।
इंक़लाबात की हर बात यहीं से निकली
गुनगुनाती हुई हर रात यहीं से निकली ।
घन की घनघोर घटाएँ हैं न हुन के बादल
सोने-चाँदी के गली-कूचे न हीरों के महल ।
आज भी जिस्म के अम्बार है बाज़ारों में
ख़्वाज-ए-शहर है यूसुफ़ के ख़रीदारों में ।
शहर बाक़ी है मुहब्बत का निशाँ बाक़ी है
दिलबरी बाक़ी है दिलदारि-ए-जाँ बाक़ी है ।
सरे फ़ेहरिस्त्ते निगाराने जहाँ बाक़ी है
तू नहीं है तेरी चश्मे निगरा बाक़ी है ।