भरमत भूत संग, भंग मदमाते अंग,
भसम रमाये भकुआए लसे बेस है ।
ग्रस्त उन्माद नहिं हरख विखाद नेकु,
भूखन भुजंग मनो विगत कलेस हैं।
भाव में मगन पाय विरह सती के उर,
बास समसान माहि राखत हमेस हैं।
परम कृपाल मोहि पाले ततकाल,
सदा रक्षक ‘सरोज’ मेरी विरही महेस हैं।

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *