भज भिखारी, विश्वभरणा,
सदा अशरण-शरण-शरणा।

मार्ग हैं, पर नहीं आश्रय;
चलन है, पर निर्दलन-भय;
सहित-जीवन मरण निश्चय;
कह सतत जय-विजय-रणना।

पतित को सित हाथ गहकर
जो चलाती हैं सुपथ पर,
उन्हीं का तू मनन कर कर
पकड़ निश्शर-विश्वतरणा।

पार पारावार कर तू,
मर विभव से, अमर बर तू,
रे असुन्दर, सुघर घर तू,
एक तेरी तपोवरणा।

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *