ब्राह्मण तो पोथी लिए भागे जात खिड़की राह
खींचतु है आह-आह करे आह प्राण को।
जनितों जो विवाह ऐसी अइतो नाहीं मैना गेह,
बाँच जाय प्राण मेरी मारूँ मुँह दान को।
कठिन कराल विकराल है बराती लोगन
लाखों बिना मुँह के हजारों बिना कान के।
द्विज महेन्द्र भालचन्द्र वाले की बारात ऐसी।
त्यागे ही भली है बात अइसन जजमान को।