बुतखाना नया है न खुदाखाना नया है
जज़्बा है अकीदत का जो रोजाना नया है
इक रंग पे रहता ही नहीं रंगे जमाना
जब देखिये तब जल्वाए जानाना नया है
दम ले लो तमाजत की सतायी हुई रूहो
पलकों की घनी छाँव में खसखाना नया है
रहने दो अभी साया-ए-गेसू ही में इसको
मुमकिन है सँभल जाये ये दीवाना नया है
बेशीशा-ओ-पैमाना [7] भी चल जाती है अक्सर
इक अपना टहलता हुआ मैखाना नया है
बुत कोई नया हो तो बता मुझका बरहमन
ये तो मुझे मालूम है बुतख़ाना नया है
जब थोड़ी-सी ले लीजिय, हो जाता है दिल साफ
जब गर्द हटा दीजिये पैमाना नया है
काशी का मुसलमाँ है ’नजीर’ उससे भी मिलिये
उसका भी इक अन्दाज फकीराना नया है