अट्टहास कर, पापी का मैं-
हृदय हिलानेवाली हूँ;
गगन-गोद में नृत्य-मग्न मैं
करालिनी हूँ काली हूँ!
पिशाचिनी हूँ शोणित प्यासी
क्रोध-मूर्ति, मैं हूँ न सरल;
मृत्यु-सरीखी लिये घूमती
प्रलय-पात्र में नाश-गरल!
मेघों के विप्लव-दल की मैं
हूँ नवीन-नायिका उदण्ड;
चिनगारी हूँ सर्वनाश की
कुटिल चक्र चालिनी प्रचण्ड!
हो सवार द्रुत बादल-रथपर
खोज रही हूँ मैं निर्भय-
कंसराज का पता; हुआ है
आज दुष्ट का पापोदय!
बनकर आग बरस जाऊँगी
शक्तिशालिनी मैं तत्काल
चिह्न न शेष रहेगा कोई
अन्यायी का क्षुद्र विशाल!