बच्चा-ए-शाहीं से कहता था उक़ाबे-साल -ख़ुर्द
ऐ तिरे शहपर  पे आसाँ रिफ़अते- चर्ख़े-बरीं

है शबाब अपने लहू की आग मे‍ जलने का काम
सख़्त-कोशी. से है तल्ख़े-ज़िन्दगानी अंग-बीं

जो कबूतर पर झपटने मे‍ मज़ा है ऐ पिसर
वो मज़ा शायद कबूतर के लहू मे‍ भी नहीं

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *