बँसहा चढ़ल अइले शिव मतवालवा हे,
कइसे में परिछब भोला बउराहवा हे।।
अंग में विभूति डिम-डिम डमरू बजावे हे,
टक-टक ताके मोरा गौरी निहारे हे।।
कइसन बेढंगा बरवा दुअरा पर ठाढे़ हे,
दुलहा के देखि मोरा जियरा डेराला हे।।
भूत-बैताल संगे सँपवा चबाबे हे।।
अइसन बउराह बर के गउरा न देहब हे,
बलु गउरा रहिहें मोरा बारी कुँआरी हे।।
नारद के हम का ले बिगरनी हे,
समुझि-समुझि शिव हँसले अँगनव हे,
निरखे ‘महेन्द्र’ रूप कइसन बनवलें हे।।