हम भी कभी थे अफजल, प्राचीन हिन्द वाले।
अब हैं गुलाम निर्बल, प्राचीन हिन्द वाले॥
इतिहास हैं बताते, है शुद्ध खूँ हमारा।
पर अब हैं शूद्र सड़ियल, प्राचीन हिन्द वाले॥
बाहर से क़ौम आई, बसने को जो यहाँ पर।
सब ले लिया था छलबल, प्राचीन हिन्द वाले॥
वे ही हैं द्विजाती ये, पर खल्तमल्त हैं सब।
छाती के बने पीपल, प्राचीन हिन्द वाले॥
अकड़े जो, गयेपकड़े, जकड़े गये वह छल से।
फिर दास बने थल-थल, प्राचीन हिन्द वाले॥
तन-मन व धन निछावर, कर दोगे कौम पर गर।
“हरिहर” बनोगे परिमल, प्राचीन हिन्द वाले॥
शेर-
तवारीखें बताती हैं हर इक कौमों की हालत को।
गिरी हैं या उठीं कैसे, ज़रा इतिहास पढ़ देखो॥