पी लिया जब से तिरी तेगे-अदा का पानी
आग को हमने समझ रक्खा है ठंडा पानी
उफ़ ये मज़बूर बशर और तकब्बुर इतना
सख़्त हैरत है कि किस बिरते पे तत्ता पानी
घर से निकला हूँ कफ़न बांध के मक़तल की तरफ
देख लूंगा कि सितमगर में है कितना पानी
ज़िन्दगी रो के कटी मर के जहन्नुम पाया
देखिये आग है उकबा तो ही दुनिया पानी
किस ने ये छेड़ दिया ज़ख़्मे-जिगर को ऐ दिल
खून बन बन के मिरी आंख से टपका पानी
इस तरफ आग कि सीने में भड़क उट्ठी है
उस तरफ़ हुक्म कि हरगिज़ न मिलेगा पानी
कभी दुनिया का सफ़र और कभी उक़्बा का
यूँ ही भटकाता है इंसान को दाना पानी
प्यास है दिल में मगर हौसला पीने का नहीं
किस क़दर तल्ख़ है दरियाए-वफ़ा का पानी
मुझ को उस्ताद ने बक्शी है ‘रतन’ ये ताक़त
बांध लेता हूँ मैं दरियाए-सुख़न का पानी।