लज़्ज़ते आग़ोशे शब से थक गया है माहताब
रात की रानी ने उससे छीन ली रुहे शबाब ।
लड़खड़ाता ऊँघता है जानिबे मग़रिब रवा
ज़र्द चेहरे पर अयाँ लब हाय लैला के निशाँ ।
रिन्द-ए-शब बेदार, जा सो जा, सियाही ओढ़कर
ख़्वाबे-शीरीं के मज़े ले पहलुए शब छोड़कर ।
मौत तेरी, ज़िंदगी-ए-महर का पैगाम है
मरमरीं दस्ते-सहर में देख रंगीं जाम है ।