पहुंचे न जो मुराद को वो मुद्दआ हूँ मैं
नाकामियों की राह में ख़ुद खो गया हूँ मैं

कहते हैं जिस को हुस्न उसी का हज नाम इश्क़
देखो मुझे ब-ग़ौर कि शाने-ख़ुदा हूँ मैं

पर्दा उठा कि होश की दुनिया बदल गई
हैरान हूँ कि सामने क्या देखता हूँ मैं

पैवंद ख़ाक हो के मिलें सर-बुलंदियाँ
दश्त-ए-जुनूँ में बन के बगूला उड़ा हूँ मैं

वाइज़ के पंद-ओ-व’अज़ का इतना असर तो है
जो कुछ भी आज उस ने कहा पी गया हूँ मैं

समझे मिरी हक़ीक़त-ए-हस्ती कोई ‘रतन’
ऐन-ए-फ़ना की शक्ल में ऐन-ए-बक़ा हूँ मैं।

By shayar

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