ए ख़ूशा-ओ दिन के जब तुझसे मुलाक़ातें न थीं
ऐसे मुश्किल दिन न थे ऐसी कठिन रातें न थीं ।

जब दिले नादाँ यूँ बेतरह भर आता न था
आतिशे ग़म तेज़ करने वाली बरसातें न थीं ।

शब के सन्नाटे में चुपके-चुपके रो लेना न था
आँख में आँसूँ न थे लब पर मुनाजातें न थीं ।

जब हरीमे दिल में रोशन ही न थे ग़म के चिराग़
चाँदनी रातें थीं, ऐसी चाँदनी रातें न थीं ।

By shayar

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