न हो गर आशना नहीं होता|
बुत किसी का ख़ुदा नहीं होता|

तुम भी उस वक़्त याद आते हो,
जब कोई आसरा नहीं होता|

दिल में कितना सुकून होता है,
जब कोई मुद्दवा नहीं होता|

हो न जब तक शिकार-ए-नाकामी,
आदमी काम का नहीं होता|

ज़िन्दगी थी शबाब तक “सीमाब”,
अब कोई सानेहा नहीं होता|

By shayar

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