न यह कहो “तेरी तक़दीर का हूँ मैं मालिक।
बनो जो चाहो ख़ुदा के लिए, ख़ुदा न बनो॥

अगर है जुर्मे-मुहब्बत तो ख़ैर यूँ ही सही।
मगर तुम्हीं कहीं इस जुर्म की सज़ा न बनो॥

मिले भी कुछ तो है बेहतर तलब से इस्तग़ना।
बनो तो शाह बनो, ‘आरज़ू’! गदा न बनो॥

By shayar

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