न जिन्दगी ही में तय हो तो मरहला  कैसा
जो सॉंस तोड़ के निकले वो हौसला कैसा

फजूल  सुलह-सफाई की बात करते हो
नहीं है जब कोई झगड़ा तो फैसला कैसा

जिसे सलाम न मंजिल करे वो रहरौ  क्या
जो दूरियाँ न समेटे वो फासला कैसा

घटे न उम्रे अलम  जिससे वो मसर्रत  क्या
जो जिन्दगी न बढ़ाये वो वलवला  कैसा

तुम्हारे बन्दे हैं हम और तुम हो बन्दानवाज
हमारा और तुम्हारा मुकाबला कैसा

बढ़े न बात तो क्या आये गुफ्तगू का मजा
न खींचे तूल  तो दिल का मुआमला कैसा

जो गौरो फिक्र  को दावत न दे वो उक्दा  क्या
जो मुश्किलों से न हल हो वो मसला कैसा

जो जान ले के न छोड़े वो आरजू कैसी
जो दम के साथ न निकले वो हौसला कैसा

लबों तक आते हुए अब हँसी लरजती है
खुशी ने गम से किया है तबादला कैसा

’नजीर’ अश्के रवाँ  ने भी साथ छोड़ दिया
लुटा है हसरतों अरमाँ का काफिला कैसा

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