न ज़िन्दगी ही में मिल सकी है न मर्ग पर ही खुशी मिलेगी
मिली है जो दिल की बेक़रारी हर इक जगह बस वही मिलेगी
नवेदे-राहत नहीं मिलेगी ये ना-उमीदी पुकारती है
उमीद लेकिन ये कह रही है अभी मिलेगी अभी मिलेगी
फ़ना बक़ा की हदों से आगे गुज़र के हम मुंतज़िर खड़े है
सुरुरे-जन्नत मिलेगा या अब हयाते-ला मुंतही मिलेगी
वो हश्र ढाया की मार डाला हमें तो पहली ही ज़िन्दगी ने
फिर उस पे मज़हब ये कह रहा है कि और ज़िन्दगी मिलेगी
ख़ुदा को सजदा किया जो चाहे तो पहले खुद को सलाम कर ले
ये भेद है इक ख़ुदारसी का इसी से खुद आगही मिलेगी
कली-कली को चमन चमन में शिगुफ्ता ख़ातिर तो देख लोगे
हमारे दिल के चमन में लेकिन बहार में बे-कली मिलेगी
ये खुद अंधेरे में जा रहे हैं चिराग़े-ईमाँ जलाने वाले
जनाबे-वाइज़ के दिल को देखो तो हर तरफ तीरगी मिलेगी
मिरी तमन्ना हदे-तमन्ना से बढ़ सकेगी न बढ़ सकी है
यही यकीं है कि रंजो-ग़म से न जीते जी मख्लसी मिलेगी
‘रतन’ दिल-ओ-जां से महव हो जा तो आप अपनी उबूदियत पर
ख़ुदी की तारीकियों में अक्सर ख़ुदा-शनासी छुपी मिलेगी।