ये किस पैकर की रंगीनी सिमट कर दिल में आती है
मेरी बेकैफ़ तन्हाई को यूँ रंगी बनाती है ।
ये किसकी जुम्बिशे मिज़गाँ रबाबे दिल को छूती है
ये किसके पैरहन की सरसराहट गुनगुनाती है ।
मेरी आँखों में किसकी शोखी-ए-लब का तस्सव्वुर है
के जिसके कैफ़ से आँखों में मेरी नींद आती है ।
सुकूत-ओ-शांति के हर क़दम पर फूल बरसाती
असीरे काकुले शब गूं बना कर मुस्कराती है ।
मेरी आँखों में घुल जाती है कैफ़े नज़र बनकर
मुझे क़ौसे क़जा की छाँव में पहरों सुलाती है ।
सहर तक वो मुझे चिमटाए रखती है कलेजे से
दबे पाँवों किरण खुरशीद की आकर जगाती है ।