देखा हर एक शाख पे गुंचो को सरनिगूँ.
जब आ गई चमन पे तेरे बांकपन की बात.

जाँबाज़ियाँ तो जी के भी मुमकिन है दोस्ती.
क्यों बार-बार करते हो दारों-दसन की बात.

बस इक ज़रा सी बात का विस्तार हो गया.
आदम ने मान ली थी कोई अहरमन की बात.

पड़ता शुआ माह पे उसकी निगाह का.
कुछ जैसे कट रही हो किरन-से-किरन की बात.

खुशबू चहार सम्त उसी गुफ्तगू की है.
जुल्फ़ों आज खूब हुई है पवन की बात.

By shayar

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