ईश जीव में भेद यह जिव माया लपटान।
माया ईश न मोहई मायापति भगवान।। 1
ईश जीव से है बड़ा कर उसको परनाम।
हाथ जोरि विनती करहुँ छोड़ मोह मद काम।। 2
सुख दुख दोनहुँ बंधु हैं हैं ईश्वर अधीन।
देवहिं ईश्वर कर्म फल जो जस करनी कीन।। 3
हे जग करता सब दुख हरता तुम जग पालनहार।
किसी को अति सुख दीन्ह तुम किसी को दुख अपार।। 4
सुखियन को दुख में करत दुखियन को सुख देहु।
यह सब प्रभुता आप में तौ हमारि सुनि लेहु।। 5
है दीनन की विनय यह सुनिए दीनदयाल।
काटहु दुख जग दुखिन का जिन कृपाण कराल।। 6
है अपराधी तोर सब भूल कीन्ह तन पाय।
क्षमहु नाथ अपराध सब तुम बिनु कौन सहाय।। 7
तोर दीन्ह दुख तुम हरहु दुख नाशक तुव नाम।
लाख राज निज नाम की यही विनय वसु याम।। 8
सुखियन को यह उचित है लख दुखियन कर हाल।।
बनें सहायक दुखिन कर देकर धन तत्काल।। 9
है दुख सागर अगम यह तुम केवट बलवान।
पार करहुँ प्रभु दुखिन को तुव आशा रहमान।। 10