दिले हजीं की तमन्ना दिले-हजीं में रही
ये जिस ज़मीं की थी दुनिया उसी ज़मीं में रही
हिजाब बन न गईं हों हक़ीक़तें बाहम
कि बेसबब तो कशाकश न कुफ़्रो-दीं में रही
सरे-नियाज़ न जब तक किसी के दर पे झुका
बराबर इक ख़लिश -सी मिरी जबीं पे रही
दिले हजीं की तमन्ना दिले-हजीं में रही
ये जिस ज़मीं की थी दुनिया उसी ज़मीं में रही
हिजाब बन न गईं हों हक़ीक़तें बाहम
कि बेसबब तो कशाकश न कुफ़्रो-दीं में रही
सरे-नियाज़ न जब तक किसी के दर पे झुका
बराबर इक ख़लिश -सी मिरी जबीं पे रही