मैं लाऊँगा, तुम चुप देखो,
विजय-दिवस मैं लाऊँगा;
अखिल-विश्व के मन-मंदिर में
अपनी ज्योति जगाऊँगा!
ऊँची आशाएँ उठती हैं
लहर-समान हृदय में आज!
काँप रहा सुन हिंसक-गर्जन
भय-कातर होकर वनराज!
हँसता है पागल-सा खिल-खिल
हो प्रमत्त रक्ताक्त-प्रभात!
टहल रहा विद्रोही-यौवन
रंजित कर शोणित से गात!
चढ़ दुर्गम हिमगिरि के ऊपर
कीर्ति-निशान उड़ाऊँगा!
मैं लाऊँगा, तुम चुप देखो,
विजय-दिवस मैं लाऊँगा!
मैं कूदूँगा अग्नि-कुंड में
विष का पान करूँगा मैं!
एक इशारे पर जीवन का
सुख बलिदान करूँगा मैं!
तीनों लोक हिला डालूँगा
सिंह-समान दहाड़ूँगा!
मैं उच्छृंखल द्वेष-दुष्ट को
निश्चय आज पछाडूँ़गा!
मंत्र फूँक कर मैं दुनिया में
भीषण आग लगाऊँगा!
मैं लाऊँगा, तुम चुप देखो
विजय-दिवस मैं लाऊँगा!
अत्याचारी-अहंकार के
हाथ कठोर मरोडू़ँगा!
जीर्ण शृंखलाएँ तोडूँगा
घृणित-पाप-घट फोडू़ँगा!
स्वर्ण-कलम से विहँस लिखूँगा
मैं स्वतंत्रता का इतिहास!
मेरे भृकुटि-भंग पर भीषण
नाचेगा उन्मत्त-विनाश!
दुखियों का संताप हरूँगा
दीन-बंधु कहलाऊँगा!
मैं लाऊँगा, तुम चुप देखो
विजय-दिवस मैं लाऊँगा!
अरे, दूर हो ओ मायावी!
जा हट, ओ पापी-अभिशाप!
क्या फल लाये थे बोलो
अन्यायी-दुर्योधन के पाप!
मानवता की दग्ध-चिता पर
दानवते! अब कर न विहार!
भाग-भाग ओ री पिशाचिनी!
सुन यह दिग्विजयी-हुंकार!
छीन मुरारी के हाथों से
अब मैं ”चक्र“ चलाऊँगा!
मैं लाऊँगा, तुम चुप देखो,
विजय-दिवस मैं लाऊँगा!
सुलग रही यौवन-लहरों में
सर्वनाश की भीषण-आग!
गाता है उल्लास झूम कर
विप्लव का विध्वंसक-राग!
फूँक रहा है क्रोध-भयंकर
ज़हर-भरा प्रचंड तूफान!
तान त्रिशूल खड़ा है निर्भय
मतवाला उन्माद महान!
अनियंत्रित गुरु-पदाघात कर
मैं भूकम्प बुलाऊँगा!
मैं लाऊँगा, तुम चुप देखो,
विजय-दिवस मैं लाऊँगा!
मेरी ज्वाला सह न सकेगा
पातक-भरा कुटिल-संसार!
भागेंगे भयसे कातर हो
भूतनाथ वैराग्य बिसार!
झुक जायेगी मेरे सम्मुख
खूनी कीकठोर-तलवार!
सुधा-स्रोत, मेरे हित होगी-
विष की प्राणंतक-बौछार!
महाशक्ति की बलि-वेदी पर
रक्त-प्रसून चढ़ाऊँगा!
मैं लाऊँगा, तुम चुप देखो,
विजय-दिवस मैं लाऊँगा!
तारों की माला पहरूँगा
चंद्र-तिलक मैं धारूँगा!
बैठ सूर्य-रथ पर विचरूँगा
प्रलय-बीन झंकारूँगा!
आँखों से प्रकाश फेकूँगा
जग में अद्भुत महाप्रचंड
मेरी ओर कौन देखेगा
दिग्विजयी मैं, शक्ति अखंड।
माँ के चरणों में लोटूँगा
फूला नहीं समाऊँगा!
मैं लाऊँगा, तुम चुप देखो,
विजय-दिवस मैं लाऊँगा!