दयारे हिन्द का वो राहबर तेलंगाना
बना रहा है नई इक सहर तेलंगाना ।
बुला रहा है बसिम्ते-दिगर तेलंगाना
वो इन्क़लाब का पैग़म्बर तेलंगाना ।
इमाम-ए तिश्तालबाँ ख़िज्रे राहे आबे हयात
अँधेरी रात के सीने में मशालों की बरात ।
मेरा सिबात मेरी कायनात मेरी हयात
सलाम महर-ए बग़ावत, सलाम माह-ए नजात।
सियाह रात जराइम पनाह ज़ुल्म बदोश
सियाह रात में बदकार मस्त और मदहोश ।
सियाह रात में मक़्तूल इस्मतों का ख़रोश
सियाह रात में बाग़ी अवाम बर्क़बदोश ।
उठे हैं तेग़ बकफ़ यूँ बसद हज़ार जलाल
वो कोह वो दश्त के फ़रज़न्द खेतियों के लाल ।
चमक रही है दराँती उछल रहे हैं कुदाल
बिनाए क़स्रे इमारत शिकिस्ता-व-पामाल।
लरज़-लरज़ के गिरे सक़फ-ओ-बम-ए ज़रदारी
है पाश-पाश निज़ाम-ए हलाकू व ज़ारी
पड़ी है फ़र्क़-ए मुबारक पे ज़रबतेकारी
हुज़ूरे आसिफ़े साबे पे है ग़शी तारी ।
बदल रही है ये रंज-ओ अज़ाब की दुनिया
उभर रही है नए आफ़ताब की दुनिया ।
नए अवाम, नई आब-ओ-ताब की दुनिया
वो रंगो नूर की महफ़िल शबाब की दुनिया ।
सलाम सुर्ख़ शहीदों की सरज़मीन सलाम
सलाम अज़्म-ए-बुलन्द, आहनी यक़ीन सलाम ।
मुजाहिदों की चमकती हुई जबीन सलाम
दयारे हिन्द की महबूब अर्ज़ चीन सलाम ।